निधि मिश्रा

महाकुंभ मेला 2025 के 10 अनजाने तथ्य जो आपको हैरान कर देंगे

कुंभ मेला हर तीन साल में एक बार आयोजित होता है और यह चार पवित्र शहरों - प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक - में होता है। हर शहर में कुंभ मेला 12 साल में एक बार होता है।

कुंभ मेला की तिथियां ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करती हैं, खासकर बृहस्पति, सूर्य और चंद्रमा के राशि परिवर्तन के आधार पर होता है। यही कारण है कि कुंभ मेला हर बार अलग-अलग तिथियों पर आयोजित होता है।

महाकुंभ मेला हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है और इस बार प्रयागराज में मनाया जाएगा। कहा जाता है कि महाकुंभ में भाग लेने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और उसे मोक्ष प्राप्ति का लाभ मिलता है।

यह पर्व देवताओं और दैत्यों के बीच अमृत कलश (कुंभ) को हासिल करने की संघर्ष की कहानी को याद करता है। कहा जाता है कि अमृत के चार बूँदें इन चार पवित्र स्थलों पर गिरी थीं, जो आज कुंभ मेला के आयोजन स्थल बन चुके हैं।

कुंभ मेला के संगम पर बहने वाला नदी का पानी अमृत के समान होता है। कहा जाता है कि इन पवित्र जल में डुबकी लगाने से सभी पाप धुल जाते हैं और शरीर और आत्मा की शुद्धि होती है। यह एक प्रकार से मानसिक और शारीरिक उपचार का माध्यम माना जाता है।

कुंभ मेला का इतिहास 2000 साल पुराना है। इस महापर्व का पहला लिखित संदर्भ चीनी यात्री ह्वेन सांग के यात्रा वृत्तांतों में मिलता है, जिसमें उन्होंने इस धार्मिक आयोजन का वर्णन किया है।

महाकुंभ मेला 13 जनवरी से 26 फरवरी, 2025 तक आयोजित होगा। इस साल 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के भाग लेने की संभावना है, जो अब तक की सबसे बड़ी संख्या होगी।

हाल के वर्षों में, कुंभ मेला ने पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए कई उपायों को अपनाया है, जिनमें कचरा प्रबंधन, प्लास्टिक पर प्रतिबंध और स्थायी पर्यटन को बढ़ावा देना शामिल है।

यूनेस्को ने कुंभ मेला को 'मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर' की सूची में शामिल किया है, यह इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाता है।

महाकुंभ 2025 के लिए सुरक्षा के लिहाज से सात स्तरीय व्यवस्था की गई है, और श्रद्धालुओं के सुविधा के लिए पुणे से प्रयागराज तक भारत गौरव ट्रेन सेवा शुरू की गई है।

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