मथुरा, हिंदुओं के सबसे चहेते, श्री कृष्ण का जन्मस्थल है। रास-रचैया, गिरिधर, गोपाल, कन्हैया – ऐसे अनगिनत नाम हैं इनके। अपनी चंचल बातों से सबको मोहित कर, ये सबके चहेते बन जाते थे। रास लीला हो या जन्माष्टमी व होली का पर्व यहाँ सब बड़े ही भव्य तरीके से मनाया जाता है। यह भारत के पवित्र स्थलों में से एक है। मुरलीधर जब बंसी बजाते थे तब सब दीवाने हो जाते थे और पूरा मथुरा उस स्वर से गूँज उठता था। उस मधुर स्वर की गूँज जैसे आज भी कानों में सुनाई पड़ती है। मथुरा के मंदिर अभी भी श्री कृष्ण की स्मृति बाँधे हुए है। इसी स्मृति से मथुरा का हर कोना पुलकित हो उठता है।
मथुरा का इतिहास
कृष्ण नगरी से जुडी ऐसी अनेकों कथाएँ हैं कि भगवान कृष्ण ने हमेशा बुराई का विनाश करते हुए मथुरा वासियों की सहायता की है। अपने मामा कंस द्वारा किए गए सभी दुराचार का मुँह तोड जवाब देकर उसे सबक सिखाया है। जब-जब मथुरावासियों पर संकट आया श्री कृष्ण उन सभी संकटों से लोगों को मुक्त करवाया। यह स्थान कृष्ण की अनगिनत महान कथाओं का प्रमाण है। जिन्हें लोगों ने आज भी याद रखा है और समय-समय पर इनका संचार किया है।
15 मथुरा के मंदिर
यहाँ का माहौल भक्ति-भाव में डूबोने वाला है। जहाँ आकर आप मन की शांति पाऐंगे। मथुरा जी के मंदिर विश्वभर में प्रसिद्ध हैं। उन्हीं में से कुछ मंदिरों की सूची यहाँ दी गई है:
1. श्री कृष्ण जन्मभूमी मंदिर
ये वही स्थान है जहाँ श्री कृष्ण ने जन्म लिया था। मथुरा के मंदिर में इसका सर्वोच्च स्थान है। यहाँ के स्थानीय लोगों का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण राजा वीर सिंह बुंदेल ने करवाया था जो श्री कृष्ण के ही वंशज थे। यहाँ कंस का पत्थर से बना बड़ा कारावास है। यहाँ का सबसे आकर्षक मंदिर का वो छोटा कारावास है जहाँ कृष्ण का जन्म हुआ था। यह मंदिर अपनी पवित्रता से आपके रोम-रोम को साधना में लीन कर देगा। बहुत ही खुबसूरती से इसे बनाया गया है। यहाँ कृष्ण की सफ़ेद मार्बल से बनी मूर्ति है जो अपने अस्तित्व का परिचय देती है। यहाँ आने का सबसे उचित समय है जन्माष्टमी व होली का पर्व। ये त्योहार भव्यता से यहाँ मनाया जाता है।
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2. द्वारकाधीश मंदिर
यह भारत का मशहूर व ऐतिहासिक पवित्र स्थल है जो श्री कृष्ण को समर्पित है। इस मंदिर का यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि कृष्ण द्वारका में आकर बस गए और उन्होंने अपनी आखरी साँस भी यहीं ली। मंदिर में काले मार्बल से बनी कृष्ण की प्रतिमा है और उसी के समीप सफ़ेद मार्बल से बनी उनकी प्रिय राधा की प्रतिमा भी है जिनकी सुंदरता अतुल्नीय है। इसलिए यहाँ मथुरा के मंदिर की फोटो लेना आवश्यक हो जाता है। श्रद्धालु यहाँ अधिकतर जन्माष्टमी के अवसर पर आते हैं क्योंकि उस वक्त यहाँ का नज़ारा आँखों में घर कर जाता है।
3. प्रेम मंदिर
मथुरा वृंदावन यात्रा करते वक्त अगर आप मथुरा का प्रेम मंदिर देखना भूल जाते है तो आपको पछतावा होगा। भगवान के प्रति प्रेम को समर्पित है यह मंदिर। मंदिर में राधा-कृष्ण व राम-सीता की मूर्तियाँ हैं। मंदिर का माहौल शांतिपूर्ण है जो अंतःकरण तक शांति का संचार कर देगा। 2001 में इस मंदिर को जगदगुरु श्री कृपालुजी महाराज ने आकार दिया। बृजवासियों की उपस्थिति से आरती के समय का माहौल आध्यात्मिकता में लीन कर देता है। सफ़ेद मार्बल से बने इस मंदिर की वास्तुकला भी तारीफ के काबिल है।
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4. गीता मंदिर
यह मंदिर बिरला मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। मथुरा के मंदिर में यह मंदिर भी विशेष है। इस मंदिर का मुख्य आकर्षण है मंदिर की दीवारों पर श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को युद्ध भूमि में दिए गए उपदेशों की नक्काशी। जिसे बड़ी महीनता व कुशलता के साथ दीवारों पर बनाया गया है। मंदिर में प्रवेश करते ही स्तंभों पर लिखे भगवद्गीता के 18 अध्यायों के आप साक्षी बनेंगे। मंदिर का निर्माण लाल बलुआ पत्थर से भारतीय व पाश्चात्य वास्तुकला से किया गया है। यहाँ कृष्ण, नारायण, राम, लक्ष्मी व सीता की मनोरम मूर्तियाँ मौजूद हैं।
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5. बाँके बिहारी मंदिर
बाँके बिहारी-श्री कृष्ण का एक और नाम जिसका अर्थ है: परम आनंदकर्ता। सबको आनंद देने वाला। यहाँ आप मदमस्त होकर खड़े श्रीकृष्ण को हाथ में बाँसुरी लिए हुए देखेंगे। कृष्ण जब बेहद खुश होते थे तब वह आनंदित होकर बाँसुरी बजाते थे। इसी को यहाँ प्रतिमा का आकार दिया गया है। जिसे देखकर आपके चहरे पर भी मुस्कुराहट आ जाएगी। मंदिर के मुख्य प्रवेश पर गहरे पीले व भूरे रंग की पारंपरिक डिज़ाइन बनाया गया है। यह मंदिर का मुख्य आकर्षण है।
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6. नीधिवन मंदिर
यह मंदिर धार्मिक यात्रियों के साथ-ही-साथ प्रकृति प्रेमियों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। मंदिर के चारों तरफ पेड़-ही-पेड़ हैं जो ताज़गी का एहसास कराते हैं। यह मान्यता है कि सूरज ढलने के बाद मंदिर का प्रवेश द्वार बंद कर दिया जाता हैं क्योंकि उस वक्त श्री कृष्ण राधा व गोपियों के साथ रासलीला करते हैं। यह एक रहस्यात्मक मंदिर है जिसकी पहेली अभी तक सुलझी नहीं है। इसी कारण यह मंदिर चर्चा का विषय बना रहता है।
7. महाविद्या देवी मंदिर
यह मथुरा देवी का मंदिर है जो पहाड़ों पर स्थित है जहाँ तक पहुँचने के लिए 30-40 सीढ़ियाँ का रास्ता है। माना जाता है कि नंद बाबा जिन्होंने श्री कृष्ण का पालन किया था यह उनकी कुल देवी है। नंद इनकी पूजा-अर्चना करने यहाँ आते थे। मंदिर की आकृति बहुत ही सरल है पर इसकी भी एक अलग मान्यता है। इसलिए यह यात्रियों के बीच प्रचलित है। मंदिर में सफ़ेद मार्बल से बनी देवी की मूर्ति है जिनकी आँखों में दैव्य चमक है।
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8. श्री रंगजी मंदिर
वृंदावन का सबसे बड़ा मंदिर जो भगवान विष्णु को समर्पित है। द्रविड़ वास्तुकला से इस मंदिर के हर कोने को कुशलता से बनाया गया है। मंदिर में विष्णु की शेषनागों के नीचे विश्राम करते हुए एक सुंदर प्रतिमा है। इस पावन मंदिर में राम, लक्ष्मण, सीता, नरसिंहमा, वेणुगोपाल, रामानुजाचार्य की मूर्तियाँ भी हैं। मंदिर के नियम काफी सख्त है तो आपको नियमों का पालन करना होगा।
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9. श्री कृष्ण बलराम मंदिर
प्रवेश द्वार के दोनों तरफ बने मोर आपका स्वागत करने के लिए बनाए गए हैं। सफ़ेद मार्बल से बना यह मंदिर अपनी आकर्षक वास्तुकला का प्रमाण देता है। मंदिर के तीन अल्तर है-पहले में श्री श्री गौरा निताई की प्रतिमा है। दूसरे में कृष्ण व बलराम की मूर्ति है व तीसरे में श्री श्री राधा श्याम सुंदर और गोपी-विशाखा व ललिता की मूर्ति है।
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10. श्री राधा वल्लभ मंदिर
आज से 450 वर्ष पूर्व मथुरा जिला में इस मंदिर का निर्माण हुआ। वृंदावन और राजस्थान वासियों के मन में इस मंदिर की बहुत मान्यता है। यह भी मथुरा का महत्वपूर्ण मंदिर है। यहाँ भक्ति-भाव के संगीतों से माहौल आध्यात्मिक बना रहता है। आप यहाँ आकर बहुत शांताप्रिय वातावरण पाऐंगे। मथुरा आकर आपको कुछ समय इस मंदिर को भी देना चाहिए।
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11. मदन मोहन मंदिर
मथुरा में प्रसिद्ध मंदिर विशाल भूमि क्षेत्र में बने हैं। वृन्दावन के सबसे पुराने मंदिर के रूप में जाना जाने वाला यह मंदिर बड़े पैमाने पर भगवान कृष्ण की पूजा के लिए समर्पित है। मथुरा और वृन्दावन के अधिकांश मंदिरों में भगवान कृष्ण की मूर्ति विराजमान है। यह 18.288 मीटर ऊंचा मंदिर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है ताकि पर्यटकों के लिए यह आसानी से दिखाई दे सके। इसमें एक अलग तरह की पवित्रता और आकर्षण है, यही वजह है कि लोग इस अंडाकार संरचना की ओर सबसे ज्यादा आकर्षित होते हैं।
12. यम यमुना मंदिर
यम यमुना मंदिर, जिसे यमुना-धर्मराज मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, मथुरा में विश्राम घाट के पास स्थित है। मंदिर के बाहरी हिस्से में एक आरामदायक दरवाजे के साथ चांदी की परतें लगी हुई हैं, जिसमें आप केवल थोड़ा झुककर ही प्रवेश कर सकते हैं। मंदिर के आंतरिक भाग बहुत ही साधारण हैं जहाँ इष्टदेव यम और यमुना हैं। काले पत्थर से बने देवता कमरे के मध्य में खड़े हैं और लगभग 4900 वर्ष पुराने माने जाते हैं।
13. केशव देव मंदिर
Image Credit: Manikanta1973 for Wikimedia Commons
केशव देव मंदिर मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर के पीछे की भूमि पर स्थित है। यह महत्वपूर्ण ऐतिहासिक महत्व रखता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यही वह भूमि है जहां भगवान कृष्ण को बंदी बनाकर रखा गया था। बाद में, उस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण किया गया, जिसका पूरे इतिहास में कई बार पुनर्निर्माण किया गया। भगवान कृष्ण को समर्पित यह मंदिर विशेष रूप से जन्माष्टमी के दौरान तीर्थयात्रियों से भरा रहता है।
14. आदि वराह मंदिर
मथुरा में प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर के पास स्थित, श्री आदि वराह मंदिर शहर के सबसे पुराने मंदिरों में से एक होने की प्रतिष्ठा रखता है। जो तथ्य इस मंदिर को अद्वितीय और दूसरों से अलग बनाता है, वह यह है कि इसके इष्टदेव यानी श्री आदि वराह का रंग लाल है और उन्हें ‘लाल वराह’ कहा जाता है। मंदिर सुबह 6:30 बजे से 10:30 बजे तक खुलता है। और फिर शाम 4:00 बजे से शाम 7:00 बजे तक (गर्मी में), या 3:30 बजे से शाम 6:30 बजे तक (सर्दियों में)।
15. जुगल किशोर जी मंदिर
श्री जुगल किशोर जी मंदिर मथुरा में केशी घाट के पास स्थित है और इसलिए इसे केशी घाट मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। शहर के चार सबसे पुराने मंदिरों में से एक माने जाने वाले इस मंदिर का निर्माण 1727 ई. में किया गया था। लाल बलुआ पत्थर से निर्मित, यह मंदिर एक भव्य स्थापत्य शैली का दावा करता है और इसके मूल देवता जुगल किशोर जी हैं।
श्री कृष्ण की पावन भूमि पर आकर हर व्यक्ति आनंदमयी महसूस करता है। ठीक उसी तरह जैसा कृष्ण का स्वभाव था। आप कुछ क्षण के लिए इस मधुरमय वातावरण के कायल हो जाऐंगे। मथुरा के मंदिर आपको हर पल कृष्ण के होने का आभास करवाऐंगे। अगर आप कृष्ण भक्त है तो आपको अपने कुछ दिन यहाँ ज़रूर बीताने चाहिए। अपनी मथुरा यात्रा के लिए ट्रैवल ट्राऐंगल से बुकिंग कीजिए।
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मथुरा के मंदिर आने के लिए अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न क्या- क्या है:-
मथुरा जाने के लिए मुझे क्या पैक करना चाहिए?
शहर में अत्यधिक तापमान है; अगर आप सर्दियों के मौसम में यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो सभी ऊनी कपड़े और जैकेट अपने पास रखें। गर्मियों में जाने से बचें, क्योंकि आप गर्मी से थक जाएंगे और थक जाएंगे।
मथुरा की यात्रा की योजना बनाने के लिए वर्ष का सबसे अच्छा समय कौन सा है?
मथुरा शहर में साल भर भीड़ रहती है। तीर्थयात्री ज्यादातर जन्माष्टमी और होली त्योहार के समय शहर में आते हैं। उसी महीने में एक यात्रा की योजना बनाएं और मंदिरों में उत्सव और भजन का आनंद लें।
सुखी प्रवास के लिए सबसे अच्छी जगह कौन सी है?
चूँकि मथुरा के मंदिरों में भारत और विदेशी देशों से बहुत सारे पर्यटक आते हैं, इसलिए आप शहर में आसानी से एक अच्छा होटल या धर्मशाला पा सकते हैं। सुनिश्चित करें कि आप पहले से ही आवास बुक कर लें।
मथुरा के मुख्य मंदिर कौन-कौन से हैं?
मथुरा में कई महत्वपूर्ण हिन्दू मंदिर हैं, कुछ मुख्य मंदिरों में शामिल हैं:
1. श्री कृष्ण जन्मस्थान मंदिर (केशवदेव मंदिर): यहाँ श्री कृष्ण का जन्म हुआ था और यह मंदिर मथुरा का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है।
2. बनके बिहारी मंदिर: इस मंदिर में श्री बनके बिहारीजी की मूर्ति स्थित है और यह भी एक प्रसिद्ध मंदिर है जो भक्तों के बीच मशहूर है।
3. श्री केदारनाथ मंदिर: यह एक और प्रमुख मंदिर है जो मथुरा में स्थित है और यह भी श्रीकृष्ण को समर्पित है।
यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय क्या है?
मथुरा की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के समय होता है, जो हिन्दू पंचांग के आधार पर भाद्रपद मास के आसपास होता है (जुलाई से सितंबर)। इस समय पर मथुरा धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव के रूप में चमकता है और लाखों भक्त यहाँ आकर श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का आनंद लेते हैं।
पूजा और दर्शन के लिए क्या विशेष विधियाँ हैं?
मथुरा में पूजा और दर्शन के लिए कुछ विशेष विधियाँ हैं जो आपको जानना उपयुक्त हो सकता है:
1. धार्मिक स्थलों में श्रद्धालुता: धार्मिक स्थलों में पूजा के लिए आपको स्थानीय निर्देशिका का पालन करना चाहिए और श्रद्धालुता से दर्शन करना चाहिए।
2. पुण्यक्षेत्रों की परिक्रमा: मथुरा में कई पुण्यक्षेत्र हैं जो परिक्रमा के लिए महत्वपूर्ण हैं, जैसे कि ब्रज मंडल की परिक्रमा या मुक्तेश्वर महादेव की परिक्रमा।
3. विशेष पूजा विधियाँ: कुछ मंदिरों में विशेष पूजा विधियाँ हो सकती हैं जैसे आरती, भोग, और विशेष आचार-विधियाँ। आपको स्थानीय पंडितों से सलाह लेना चाहिए कि ये विधियाँ कैसे पूरी की जा सकती हैं।
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